Sunday, May 31, 2020


भयानक है भीड़ में औरत होना

📷the logical indian

क्या होता है भीड़ में औरत होना?
महीने के दर्द से तड़पते रह जाना,
लेकिन किसी से बता नहीं पाना,
खून से सना वस्त्र लपेटे, समेटे अपना अंग,
सिकुड़ जाना खुद में,
लोंगों को पता चलने से डर जाना,
भयानक है, भीड़ में औरत होना।

क्या होता है भीड़ में औरत होना?
गर्भ से है, फिर भी मीलों है चलते जाना,
बेइंतहा तकलीफ बर्दाश्त करते जाना,
कहीं, पीछे न छूट जाए,
सड़क पर बच्चे को जन्म देने के बाद,
जन्म-मरण के इस खेल का पात्र बन,
पैदा होते ही उस नवजीवन को खो देना,
भयानक है, भीड़ में औरत होना।

क्या होता है भीड़ में औरत होना?
किसी की गीदड़ सरीखी नजरों से पलकें झुका लेना,
किसी के अभद्र शब्दों को सुनकर भी अनसुना कर देना,
तो कभी अपने स्तन की ओर बढ़ते बाजुओं को
ढकेलते हुए अपने अस्तित्व को कोसना,
अपने औरत होने के मलाल पर सिसकियां भरना,
भयानक है, भीड़ में औरत होना।
-अनुराधा

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4 comments:

  1. बेहतरीन लिखा है

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  2. beautifully written, painfully explained.

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  3. बहन जी, प्रणाम
    आप बुद्धिजीवी हैं इसलिए आपसे एक प्रश्न है, इस प्रश्न का उत्तर कोई पुरुष नहीं दे सकता इसलिए आप से पूछ रहा हूं। आप इस विषय पर लिखती भी है।
    क्या पीरियड्स और इस दौरान होने वाले मूड स्विंग्स और दर्द जैसी चीजें महिलाओं को परेशान करती हैं?
    क्या ये समस्याएं उनके निर्णय लेने की शक्ति और समझ में परिवर्तन करती है? क्या यह परिवर्तन पॉजिटिव होता है या नेगेटिव भी हो सकता है?
    अगर यह परिवर्तन पॉजिटिव होता है तो यह ईश्वर की कृपा है।
    यदि यह नेगेटिव होता है तो क्या यह किसी न्यायाधीश, न्यायमूर्ति, प्रशासनिक अधिकारी या अधिकार संपन्न महिला को अप्रिय निर्णय लेने हेतु भी बाध्य कर सकता है जो समाज हितैषी न हो?

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