Sunday, May 3, 2020

मां के बगल में

मां के बगल में सोई हूं,
वो नींद में सो रही हैं
और मैं जाग रही हूं,
जाग रही हूं और 
निहार रही हूं उनके शांत चेहरे कोे,
जो सिर्फ सोते वक्त शांत है
मैं जाग रही हूं और 
देख रही हूं उनकी  उभरती 
झुर्रियों को,
सफेद होते लेकिन 
रेशम जैसे चमकते बालों को,
आंखों के गढ्डों मेंं
थकान की खाई को,
मैं जाग रही हूं 
जाग रही हूं और सोच रही हूं 
क्या माएं सुपर ह्यूमंस होती है?
नहीं, तो फिर मां 
मां तुम कभी थकती क्यों नहीं?
थकती क्यों नहीं रोज़ 
एक ही काम करने से,
रोज़ घर को कंधे पर लिए 
जीने से,
सालों से, हर रोज़
अपने सपनों से अनगिनत 
समझौते करते हुए,
मैं जाग रही हूं 
और खुद से सवाल कर रही हूं
क्या ये झुर्रियां 
मुझसे कुछ कहना चाहती हैं?
जैसे मुझसे कह रही हों
'मैं थक गई हूं अब'
मां सो रही है
सुबह उठ कर फिर 
उठाएगी घर अपने कंधों पर
और छिपा लेगी 
कि उनकी झुर्रियां
क्या कहना चाहती हैं।
 


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