क्यों आया
भारतीय टेलीकॉम
सेक्टर पर
संकट? हम
सभी के
लिए यह
चिंता का
विषय क्यों?
अनुराधा
भारतीय टेलीकॉम कंपनियां इस समय सबसे बड़े संकट से गुजर रही हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि कंपनियों पर चढ़ा हजारों-लाखों करोड़ रुपयों का कर्ज उन्हें जल्द से जल्द चुकाना होगा। यह कर्ज करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपयों का है जिसे एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया को चुकाना हैl रिलायंस जियो ने जनवरी तक के बकाए को चुका दिया है। फरवरी में भारती एयरटेल के प्रमुख सुनील मित्तल ने टेलीकॉम मंत्री से मुलाकात की और कहा कि हम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे और कर्ज़ को जल्द से जल्द चुकाने की कोशिश की जाएगी। लेकिन वोडाफोन के लिए यह कर्ज चुकाना लगभग नामुमकिन है।
लेकिन
यह
कर्ज
इतना
बड़ा
क्यों
है
और
कंपनियां
इसे
क्यों
नहीं
चुका
पा
रही
हैं
इसके
कुछ
मुख्य
कारण
हैं।
उन्हें
समझने
से
पहले
यह
जान
लेते
हैं
कि
भारत
में
टेलीकॉम
कंपनियों
की
शुरुआत
किस
तरह
से
हुई
और
कंपनियों
के
पास
स्पेक्ट्रम
(जिसे
हम
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम अथवा तरंगों के रूप में जानते हैं) खरीदने पर भुगतान के कौन से दो तरीके थे-
जब
1999 में
पहली
बार
स्पेक्ट्रम
लाया
गया
तो
इसके
लाइसेंस
की
खरीदारी
में
भुगतान
के
लिए
सरकार
ने
दो
विकल्प
दिए
●
पहला, या तो कंपनी सीधे भुगतान देकर खरीद सकती थी।
●
या फिर कंपनियों के शेयर्स देकर। दूसरे विकल्प में कंपनियों को उनके कुल कमाई का 11 से 13 फ़ीसदी हिस्सा सरकार को चुकाना था। यहीं पर आता है एडजेस्टेड ग्रॉस रिवेन्यू । यहां टेलीकॉम कंपनियों की कुल कमाई को ए जी आर कहा गया है ।
अब आते
हैं कि
यह कर्ज
इतना बड़ा
क्यों है?
एजीआर
की
परिभाषा
पर
6 साल
बाद बहस छिड़ गई और सरकार ने कहा कि एजीआर (जो अब बन चुका है-एग्रीगेट ग्रॉस रिवेन्यू) में टेलीकॉम कंपनियों के सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से की गई कमाई ही नहीं बल्कि हर तरीके से कमाए गए पैसे शामिल हैं। यानी 2006 से लेकर 2017 तक एजीआर पर चल रही लड़ाई में सरकार और कंपनियां कई बार अदालत गए और कई तरह के फैसले सुनाए गए। लेकिन आखिरकार 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि कंपनियों को एजीआर में जितने भी तरह के राजस्व को शामिल किया गया है,उनका भुगतान करना होगा वरना उन पर कार्यवाही होगी।
नोट : क्या
होता है
एग्रीगेट ग्रॉस
रिवेन्यू ?
मान
लीजिए
कोई
टेलीकॉम
कंपनी क्लब या कैफे खोलती है, तो इससे होने वाली कमाई भी रेवेन्यू में जुड़ जाएगी और टेलीकॉम सेवाओं के साथ-साथ कंपनी इस कैफे से कमाए गए पैसों का भी हिस्सा सरकार को देगी।
इसका
मतलब
यह
है
कि
टेलीकॉम
कंपनियों
को
सिर्फ
लाइसेंस और स्पेक्ट्रम खरीदने की कीमत ही नहीं चुकानी पड़ेगी बल्कि अब तक जितनी भी कमाई अन्य क्षेत्रों से हुई है उन्हें भी और उनसे जुड़े पेनल्टी और ब्याज सबको चुकाना होगा l इस फैसले के बाद भारती एयरटेल को करीब 53,000 करोड़ वोडाफोन को 50,000 करोड़ चुकाना है l
गौरतलब
है
कि
पिछले
वर्ष
टीडीएसएटी
(टेलीकॉम
डिस्प्यूट
सेटलमेंट
एंड
अपीलेट
ट्रिब्यूनल)
ने
इस
मामले
को
सुलझाने
की
कोशिश
की
और
कंपनियों
के
पक्ष
में
रियायत
देने
एवं
एजीआर
के
डेफिनेशन
को
पहले
जैसा
रखने
की
कोशिश
की
लेकिन
सुप्रीम
कोर्ट
ने
उसे
सिरे
से
खारिज
कर
दिया।
इस
मामले
में
एक
अहम
बात
यह
भी
है
कि
सरकार
का
कहना
है
कि
लाइसेंस
देते
समय
एग्रीमेंट
में
ऑल
टाइप
ऑफ
रेवेन्यू
लिखा
था
लेकिन
कंपनियों
ने
इसे
नहीं
देखा
तो
यह
उनकी
गलती
है।
वही चौंकाने वाली बात यह भी हुई कि जब पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया तब सरकार ने कंपनियों के भुगतान पर स्टे लगाने का आदेश दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सरकार को लताड़ा और कहा कि सरकार ने कानून बनाया है लेकिन उन्हें लागू करने का हक सुप्रीम कोर्ट को है। तब सरकार की तरफ से जवाब आया कि स्टे लगाने का फैसला किसी डेस्क ऑफिसर ने दिया था और अपना पल्ला झाड़ लिया। हालांकि यह बात सुनने में ही अटपटी लगती है कि इतना बड़ा फैसला कोई डेस्क ऑफिसर कैसे ले सकता है। यह अपने आप में विरोधाभासी है क्योंकि सरकार पैसे तो मांग रही है लेकिन उसे भी पता है कि कंपनियों के पास इतना पैसा नहीं है l
वहीं
गैस
अथॉरिटी
ऑफ
इंडिया
लिमिटेड
(गेल),
ऑयल
इंडिया
और
पावर
ग्रिड
कॉर्पोरेशन
ने
भी
अपनी
पाइप
लाइनों
के
साथ
फाइबर
ऑप्टिक्स
की
सेवा
देने
के
लिए
टेलीकॉम
लाइसेंस
खरीदा
था।
सबसे
बड़ी
बात
है
कि इनके मुख्य उत्पाद और सेवाओं के मुकाबले टेलीकॉम की कमाई न के बराबर है। लेकिन सरकार ने इन सरकारी कंपनियों पर भी एजीआर के तहत भुगतान करने को कहा था जिसके बाद गेल को करीब 1.72 लाख करोड़ रुपए, ऑयल इंडिया को 48,000 करोड़ रुपए और पावर ग्रिड को 22,000 करोड़ रूपए का भुगतान करना था। मतलब सरकार दो लाख करोड़ रुपए से ऊपर उन सेवाओं के मांग रही थी जो कभी दिए ही नहीं गए। गेल ने कहा था कि उन्होंने इंटरनेट सेवाओं से 30 से 35 करोड़ रुपए ही कमाए हैं। वहीं पावर ग्रिड ने कहा कि उन्होंने फाइबर ऑप्टिक्स सेवाओं से करीब 3300 करोड़ रुपए कमाए हैं। तब सरकार ने पीएसयू कंपनियों के
एजीआर
के
तहत
भुगतान
को
खारिज
कर
दिया।
साथ
ही
एमटीएनएल
और
बीएसएनएल
के
लिए
भी
यही
नियम
लागू
किया
गया।
लेकिन
प्राइवेट
कंपनियों
पर
आरोप
लगाते
हुए
कहा
सरकार
ने
कहा कि उन्होंने अपना बैलेंस शीट एजीआर के तहत मेंटेन नहीं रखा।
कुल मिलाकर कंपनियों पर सही में केवल कुल कर्ज का 25 फ़ीसदी हिस्सा बनता है। यह 75 फ़ीसदी एजीआर की नई परिभाषा के कारण बढ़ा है। कंपनियों को प्रतिवर्ष 14 फ़ीसदी ब्याज देना पड़ रहा है और क्योंकि इस पर ब्याज कंपाउंड हो रहा है,जैसे-जैसे यह विवाद जितना ज्यादा समय लेगा इस ब्याज का आकार उतना ही बढ़ता जाएगा । वित्तमंत्री सीतारमन ने कहा कि लाइसेंस के पैसे के लिए हम 2 साल का मोरटोरियम देने को तैयार हैं । लेकिन ब्याज की शर्त पर। देखा जाए तो यहां भी कंपनियों को मुंह की खानी पड़ेगी।
एजीआर
की
परिभाषा
बदलने
और
कर्ज़
के
पहाड़
बनने
के
बाद
कई
टेलीकॉम
कंपनियां
जैसे
टाटा
टेलीकॉम
सर्विसेज,
रिलायंस
कम्यूनकेशंस,
टेलीनॉर
और
एयरसेल
या
तो
बंद
हो
गई
या
फिर
भारत
में
कारोबार
बंद
कर
दिया।
इनमें
से
कई
कंपनियां
जैसे
रिलायंस
कम्युनिकेशन
अभी
भी
इंसॉल्वेंसी
यानी दिवालिया मामले में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।
2G की
परछाई
2जी घोटाला होने के बाद सरकार ने कंपनियों को स्पेक्ट्रम की नीलामी के तहत लाइसेंस वितरण शुरू किया। इससे पहले फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व का नियम अपनाया जाता था। तब तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा ने इस नियम का उल्लंघन करते हुए कंपनियों को अपने फायदे के लिए स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिया था। यह घोटाला करीब 1.76 लाख करोड़ रुपए का था। हालांकि बाद में सभी आरोपियों को निर्दोष बताया गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह घोटाला ही नहीं था। नीलामी शुरू होने के बाद कंपनियों को उस समय भुगतान किश्तों में देने का विकल्प दिया गया तो कंपनियों को यह आसान तरीका लगा और 11-12 सालों तक धीरे-धीरे यह पैसा चुकाने का फैसला किया, जब तक कि यह एजीआर का विवाद खड़ा नहीं हुआ।
अगर
केवल
स्पेक्ट्रम
की
नीलामी
के
कीमतों
को
देखा
जाए
तो
एयरटेल
पर
केवल
11,476 करोड़
रुपयों
और
आइडिया
एवं
वोडा
पर
23,920 करोड़
रुपयों
का
भुगतान
करना
बाकी
है।
हमारे लिए
यह चिंता
का विषय
क्यों?
भारती
एयरटेल
किसी
भी
तरह
अपना
कर्ज
चुका
देगा
लेकिन
वोडाफोन
के
लिए
यह
नामुमकिन
है।
अगर
वोडाफोन
बंद
होता
है
तो
इसका
असर
सीधे
देश
के
सभी
ग्राहकों
पर
पड़ेगा।
इसका
कारण
है
वोडाफोन
के
बंद
होने
के
बाद
एयरटेल
और
जिओ
मात्र
दो
टेलीकॉम
कंपनी
इस
देश
में
रह
जाएंगे
और
बाजार
में
डुओ
पॉली
आ
जाएगी
यानी
कि
सिर्फ
यही
दो
कंपनियां
टेलीकॉम
सेवाएं
प्रदान
करेगी
और
इनके
प्रतिद्वंद्विता
के
कारण
बढ़ी
हुई
कीमतें
हम
सभी
लोग
चुकाएंगे।
इसीलिए
बाजार
में
संतुलन
रहने
के
लिए
कम
से
कम
तीन
या
चार
कंपनियों
का
होना
जरूरी
है।
वोडाफोन
के
बंद
होने
से
हजारों
नौकरियां
तो
जाएंगी
ही
साथ
में
इसके
जितने
भी
ग्राहक
हैं
वह
सभी
अचानक
से
एयरटेल
और
जियो
में
स्विच
करेंगे
जिसके
लिए
इन
दोनों
कंपनियों
के
पास
इंतजाम
नहीं
है।
इसके
अलावा
आने
वाले
समय
में
5जी
लाने
के
विचारों
पर
भी
पानी
फिर
सकता
है
क्योंकि
इतना
बड़ा
कर्ज
देने
के
बाद एयरटेल के पास इतना पैसा नहीं रह पाएगा कि वह 5G के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाएं प्रदान करने पर खर्च कर पाए।
सरकार क्यों
नहीं कर
रही मदद?
इस
समय
व्यापारियों
और
अर्थशास्त्री
सरकार
की
कई
आलोचनाएं
कर
रहे
हैं।
उनका
कहना
है
कि
सरकार
को
इसमें
हस्तक्षेप
करना
चाहिए।
टेलिकॉम
सेक्टर
सबसे
बड़े
और
महत्वपूर्ण
क्षेत्रों
में
है
और
इनके
कमजोर
होने
से
पूरे
देश
पर
इसका
बहुत
बुरा
असर
होगा।
लेकिन
सरकार
के
हस्तक्षेप
नहीं
करने
के
कई
कारण
हो
सकते
हैं-
-सरकार हमेशा कंपनियों से ज्यादा से ज्यादा पैसा खींचना चाहती है, इस मामले में यह इतनी बड़ी रकम नहीं खोना चाहती।
-सरकार को यह भी डर हो सकता है कि कंपनियों की मदद करने के बाद कांग्रेस की तरह उन्हें भी व्यापारियों की भलाई पर जनता की आलोचना न झेलनी पड़े।
-वोडाफोन के बंद होने के बाद आम जनता की जेब पर मार पड़ेगी, हो सकता है कि सरकार को इससे कुछ खास असर नहीं पड़ता हो।
- एजीआर का विवाद यूपीए सरकार से ही चलता आ रहा है और इन सब मामलों में सरकारें कोई भी हो, विचारों में ज्यादा फर्क नहीं होता है, हम कह सकते हैं कि इस मामले में सभी सरकारी अपना फायदा देख रही हैं।
टेलीकॉम
क्षेत्र
से
पहले
आईएल
& एफएस,
यस
बैंक
और
जेट
एयरवेज
जैसी
कंपनियां
भी
डूब
चुकी
हैं
और
जिन्हें
सरकार
ने
बचाने
के
लिए
कोई
ठोस
कदम
नहीं
उठाया।
सरकार
को
यह
समझना
होगा
कि
इन
कंपनियों
के
बंद
होने
से
उनका
और
ज्यादा
नुकसान
होता
है।
जो
पैसे
देर
में
मिल
सकते
थे,
कंपनी
डूबने
के
बाद उनके मिलने के सारे रास्ते ही बंद हो जाते हैं।
No comments:
Post a Comment